गर्भावस्था का पता लगते ही एक महिला को अपने आप में संपूर्णता का अनुभव होने लगता है, और वह अपने गर्भ में पल रहे बच्चे से मानसिक और भावनात्मक रूप से जुड़ जाती है। एक जीवन जो गर्भ में आकार ले रहा होता है, उस अजन्मे बच्चे के लिए माँ के साथ साथ सारा परिवार कई सपने सजाने लगता है। ऐसे में जब कभी कोई दुर्घटना हो जाती है, या किसी कारणवश गर्भपात करने की आवश्यकता पड़ जाती है। तब परिवार में सभी का मन दुखी हो जाता है। लेकिन इस सब में सबसे ज्यादा परेशानी महिला को होती है। यह स्थिति महिला को सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी तोड़ कर रख देती है। ऐसे में ज़रूरी होता है कि, साथी और परिवार मिलकर उसकी मदद करें और गर्भपात के बाद महिला के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के स्तर को बेहतर बनाने में महिला की सहायता करें।
गर्भावस्था से लेकर बच्चे के जन्म तक महिला को किसी योग्य डॉक्टर से ही अपनी और गर्भ की जांच करानी चाहिए। ताकि अगर कभी किसी कारण से गर्भपात कराना ही एक उपाय हो, तो डॉक्टर उसके बारे में भी महिला को सही सलाह दे सकेगा और उसकी देख रेख में ही गर्भपात की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। अगर किसी दुर्घटना के चलते गर्भपात हो भी गया है, तब भी महिला को डॉक्टर से जांच जरूर करा लेनी चाहिए। क्योंकि इस परिस्थिति में गर्भपात हो जाने का कारण और गर्भपात के बाद शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में महिला को सही जानकारी मिल सकती है। गर्भपात करने के लिए अपनाया गया तरीका अगर सही होता है, तब महिला को शारीरिक समस्याएं कुछ ही समय के लिए हो पातीं हैं। जो कि कुछ दिनों के सम्पूर्ण आराम और अच्छी देखभाल से ठीक हो जाती हैं।
भारत के संविधान ने एक महिला को कुछ परिस्थितियों में गर्भपात करने का कानूनी अधिकार दिया है। इसलिए एक महिला बिना डरे अपने इस अधिकार का उपयोग कर सकती है। यहाँ महत्त्वपूर्ण बात यह भी है, कि गर्भपात कराने की वजह भ्रूण के लिंग विशेष का होना न हो।
गर्भपात के बाद शारीरिक स्वास्थ्य देखभाल –
जिस तरह की देखभाल महिला को बच्चे का जन्म हो जाने के बाद दी जाती है, वैसी ही देखभाल महिला को गर्भपात के बाद भी दी जानी आवश्यक होती है। जैसे कि –
- डॉक्टर की सलाह– गर्भपात के बाद, महिला को एक योग्य चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। जो कि महिला को दर्द ( Pain ) और रक्तस्राव ( Bleeding ) के लिए जरूरी और सही दवाओं का सुझाव दे सकेंगे, साथ ही किसी भी अन्य समस्या के बारे में भी सही सलाह दे सकेंगे ।
- पौष्टिक आहार – महिला को दिये जाने वाले भोजन में पौष्टिकता का खास ध्यान रखना चाहिए। हरी सब्जियां, फल, पूरे अना ज, दूध, दही और प्रोटीन की आवश्यकताओं को पूरा करने वाला आहार ही महिला के शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम होता है।
- डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें– गर्भपात के बाद यदि महिला को 100.3 डिग्री फेरेनहाइट या इससे अधिक बुखार होता है, तो तत्काल ही डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए, क्योंकि इसका कारण महिला के शरीर में इन्फेक्शन भी हो सकता है।
- दवाएँ हैं जरूरी -गर्भपात के बाद डॉक्टर द्वारा दी गई दवाओं और सप्लीमेंट्स को नियमित रूप से महिला को देते रहना चाहिए। ये दवाइयाँ महिला के शरीर को मजबूती देने के साथ-साथ शरीर में हुए सभी चोट एवं घाव को भी ठीक करने के लिए होती हैं।
- शारीरिक बदलाव – गर्भपात के बाद कुछ समय तक महिला को मॉर्निंग सिकनेस और स्तनों में दर्द का अनुभव हो सकता है। यदि ये समस्याएं लंबे समय तक बनी रहती हैं, तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
- पूरा आराम – गर्भपात के बाद महिला को कुछ समय तक भारी चीजें उठाने, ज्यादा व्यायाम (एक्सरसाइज), ड्राइविंग जैसे अधिक मेहनत वाले काम नहीं करना चाहिए । महिला के शरीर को पहले की तरह सामान्य गतिविधियाँ करने लायक बनने में थोड़ा समय लगता ही है।
गर्भपात के बाद कुछ समय तक महिला और साथी को शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए।
गर्भपात के बाद मानसिक स्वास्थ्य देखभाल –
गर्भपात के बाद महिला के मानसिक स्वास्थ्य को भी शारीरिक स्वास्थ्य की तरह ही देखभाल की जरूरत होती है। यह एक ऐसा समय होता है जब महिला को साथी के साथ ही साथ परिवार के भी भरपूर साथ की आवश्यकता होती है। महिला के शरीर में हुए हार्मोनल बदलाव भी उसे होने वाले मानसिक तनाव का एक बड़ा कारण होते है। महिला अगर सहज हो तब आवश्यकता पड़ने पर उसे किसी योग्य मनोचिकित्सक की सलाह भी लेना चाहिए। और कुछ खास बातें जानना आवश्यक है, जैसे कि –
- अपनी देखभाल खुद करें – गर्भपात के समय और उसके बाद महिला एक अलग ही तरह के मानसिक तनाव से गुजरती है। बहुत सारी नकारात्मक भावनाएं उसके मन में घर कर जातीं हैं। ऐसे में महिला को चाहिए कि वह अपने आप का खयाल रखें। अपनी रुचि के अनुसार मन को खुश करने वाले काम करे। बुरे विचारों के बदले अच्छी और खुश करने वाली बातें सोचे।
- हल्का व्यायाम – गर्भपात के 3 से 4 दिन के बाद यदि शरीर में कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या न हुई हो। तब महिला, डॉक्टर से सलाह लेकर सामान्य सा हल्का फुल्का व्यायाम करना शुरु कर सकती है, याद रहे ‘’हल्का व्यायाम’’ या फिर कोई भी सामान्य शारीरिक गतिविधि। इसके साथ ही अच्छी नींद लें,पर्याप्त मात्रा में पानी पियें।
- परिवार की अहम भूमिका – गर्भपात के बाद साथी और परिवार ही महिला के आस पास एक सकारात्मक या नकारात्मक माहौल बनाते हैं । महिला के साथी और परिवार को गर्भपात से जुड़ी कोई भी गलत बात महिल ा से नहीं बोलना चाहिए। ऐसा माहौल महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है। परिवार के सदस्यों को चाहिए कि वे ऐसे समय में महिला का साथ दें। उसे सुने और समझें।
- साथी का साथ – गर्भावस्था के दौरान महिला अपने गर्भ में पल रहे बच्चे से मानसिक और भावनात्मक रूप से भी जुड़ जाती है, जबकि पुरुष महिलाओं जितने संवेदनशील नहीं माने जाते, इसलिए उन्हें महिला के मानसिक तनाव का अंदाजा नहीं हो पाता। ऐसे में साथी को महिला से बात करना चाहिए और उसे भावनात्मक सहारा देना चाहिए। ऐसा करने से महिला शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरीकों से कुछ ही दिनों में सामान्य दिनचर्या में वापस आ सकती है।